फाइलेरिया (हाथीपाँव) का परिचय।
फाइलेरिया या हाथीपाँव एक गंभीर संक्रामक रोग है, जो मानव शरीर में परजीवी कृमियों (worms) के कारण होता है। यह रोग मच्छरों के माध्यम से फैलता है और मुख्यतः उष्णकटिबंधीय व उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है। भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल तथा अफ्रीकी देशों में यह बीमारी अधिक प्रचलित है। यह रोग धीरे-धीरे शरीर के अंगों, विशेषकर पैरों, हाथों और जननांगों को अत्यधिक सूजनयुक्त बना देता है, जिससे व्यक्ति को चलने-फिरने और सामान्य जीवन जीने में कठिनाई होती है।
फाइलेरिया क्या है?
फाइलेरिया एक परजीवी रोग (Parasitic Disease) है जो वुचेरेरिया बैंक्रॉफ्टी (Wuchereria bancrofti), ब्रूजिया मलायी (Brugia malayi) तथा ब्रूजिया टिमोरी (Brugia timori) नामक सूक्ष्म कृमियों से होता है। ये कृमि मानव शरीर की लसीका वाहिनियों (lymph vessels) में रहकर उन्हें क्षतिग्रस्त कर देते हैं, जिससे शरीर के अंगों में सूजन आने लगती है और धीरे धीरे फूल जाता है।
फाइलेरिया के फैलने का कारण
फाइलेरिया का संक्रमण मच्छरों के काटने से होता है। संक्रमित व्यक्ति के खून में फाइलेरिया के लार्वा (माइक्रोफिलारिया) होते हैं। जब मच्छर ऐसे व्यक्ति को काटता है तो यह लार्वा मच्छर के शरीर में चले जाते हैं।
कुछ दिनों बाद जब वही मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है, तो यह लार्वा उसके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और कुछ समय बाद वयस्क कृमि बन जाते हैं। ये कृमि लसीका प्रणाली को बाधित कर देते हैं, जिससे सूजन और दर्द की समस्या उत्पन्न होती है।
फाइलेरिया के प्रमुख लक्षण
फाइलेरिया के लक्षण धीरे-धीरे दिखाई देते हैं। शुरुआती अवस्था में व्यक्ति को हल्का बुखार और बदन दर्द महसूस होता है, लेकिन रोग बढ़ने पर इसके गंभीर लक्षण दिखने लगते हैं
1. पैरों, हाथों या जननांगों में अत्यधिक सूजन
2. प्रभावित हिस्से में जलन, दर्द या खुजली
3. बुखार और शरीर में कंपकंपी
4. लिम्फ नोड्स (गांठों) में सूजन
5. त्वचा का मोटा और सख्त हो जाना
6. चलने-फिरने में कठिनाई और थकान
7. कभी-कभी मूत्र में दूधिया रंग (Chyluria) दिखाई देना
यदि रोग का उपचार समय पर न किया जाए तो यह स्थायी विकृति (permanent deformity) का कारण बन सकता है।
फाइलेरिया का निदान (Diagnosis)
फाइलेरिया की पहचान के लिए निम्नलिखित जांचें की जाती हैं
1. खून की जांच (Blood Test): रात के समय ली गई रक्त जांच में माइक्रोफिलारिया की उपस्थिति से रोग की पुष्टि होती है।
2. एंटीजन टेस्ट (Antigen Detection Test): इसमें रोगजनक कृमि के एंटीजन को खोजा जाता है।
3. अल्ट्रासाउंड (Ultrasound): लसीका ग्रंथियों में कृमियों की गतिविधि देखने के लिए।
4. सीरोलॉजिकल टेस्ट: शरीर में बने एंटीबॉडीज का पता लगाने के लिए।
फाइलेरिया का उपचार (Treatment)
फाइलेरिया का इलाज संभव है, यदि समय पर सही दवा और देखभाल की जाए। प्रमुख उपचार विधियाँ इस प्रकार हैं
1. दवाइयाँ:
डाइइथाइलकार्बामजीन (DEC): यह फाइलेरिया की सबसे प्रभावी दवा है।
एल्बेंडाजोल (Albendazole) और आइवर्मेक्टिन (Ivermectin) को भी साथ में दिया जा सकता है।
ये दवाइयाँ शरीर से माइक्रोफिलारिया को नष्ट करती हैं।
2. स्वच्छता और सफाई:
प्रभावित हिस्से को नियमित रूप से धोना और सूखा रखना चाहिए।
किसी भी प्रकार के फोड़े या घाव को समय पर ठीक करना आवश्यक है।
3. फिजिकल थेरेपी:
सूजन को कम करने के लिए हल्के व्यायाम और मालिश की सलाह दी जाती है।
4. शल्य चिकित्सा (Surgery):
अत्यधिक सूजन या विकृति की स्थिति में शल्य चिकित्सा आवश्यक हो सकती है।
फाइलेरिया से बचाव (Prevention)
बचाव ही सबसे अच्छा इलाज है।” फाइलेरिया से बचने के लिए निम्न उपाय अपनाने चाहिए
1. मच्छरों से बचाव करें:
मच्छरदानी का प्रयोग करें।
मच्छर भगाने वाले क्रीम, कॉइल या स्प्रे का उपयोग करें।
आसपास पानी जमा न होने दें।
2. स्वच्छता बनाए रखें:
शरीर और वातावरण को साफ रखें।
नियमित रूप से नालियों और गड्ढों की सफाई करें।
3. दवा वितरण कार्यक्रम में भाग लें:
भारत सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष “राष्ट्रीय फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम (National Filaria Eradication Programme)” के अंतर्गत फाइलेरिया की रोकथाम हेतु दवाएँ निःशुल्क वितरित की जाती हैं।
इन दवाओं का सेवन सभी को करना चाहिए, चाहे उन्हें बीमारी हो या नहीं।
4. सामाजिक जागरूकता:
गाँवों और शहरी क्षेत्रों में लोगों को इस रोग के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए ताकि वे समय पर इलाज कर सकें।
भारत में फाइलेरिया की स्थिति
भारत में फाइलेरिया एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में यह बीमारी अधिक देखी जाती है। भारत सरकार ने 2030 तक फाइलेरिया उन्मूलन का लक्ष्य रखा है। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा "मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन" (MDA) कार्यक्रम चलाया जा रहा है, जिसके तहत हर वर्ष दवा वितरण अभियान चलाया जाता है।


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